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यथार्थ जीवन

पहचान...
पहचान...
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तुम छोड़ गए थे मुझे जहाँ,
आज भी मैं हूँ खड़ा वहीँ
कुछ कही कुछ अनकही,
आओ देखो तो सही I

तुम छोड़ गए मुझे तो जैसे,
बादल ने बारिश को छोड़ा
मुह मोड़ गए जैसे फूलों ने,
खुशबु से नाता था तोडा I

तुम रूठ गए,हम टूट गए ,
जीवन बड़ा विराना था
सिर पे छत की परवाह न थी,
रुकने को वही दोराहा था I

इन कश्ती जैसी आँखों में,
तुम तैरती एक सपना हो
तुम सपना हो या हकीकत हो,
मेरे मन की एक नसीहत हो I

मेरे सपनों के घरौंदों में,
बस तेरा ही एक ठिकाना है
वरना जीवन तो बहता पानी,
इसके संग ही बह जाना है I
इसके संग ही बह जाना है I

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